अब यह कचरे में नहीं जाएगा

प्‍लास्टिक कचरे के बेहतर प्रबंधन से भारत में सड़कों का निर्माण और महिलाओं के लिए आजीविका.

प्‍लास्टिक हमारे पर्यावरण के लिए लगातार बड़ा ख़तरा बनता जा रहा है. इसका सीधा असर मानव स्वास्थ्य पर, दुनिया में ताज़ा पानी की प्रणालियों और विशेषकर समुद्री संसाधनों के साथ-साथ ज़मीनी जैव-विविधता और जन स्‍वास्‍थ्‍य पर पड़ रहा है.

भारत में जहां प्‍लास्टिक का इस्‍तेमाल बढ़ रहा है, वहीं अधिकतर शहरों और क़स्‍बों में कचरे के निपटान की कोई ठोस समन्वित व्‍यवस्‍था नहीं है. इसका सीधा सा अर्थ है कि प्‍लास्टिक के बहुत थोड़े से कचरे को ही सही ढंग से एकत्र किया जाता है या उसका निपटान किया जाता है. अतः निरन्‍तर बढ़ते शहरों के मद्देनजर कचरा प्रबंधन एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है.

किन्तु भारत के मध्य प्रदेश राज्य में भोपाल और इंदौर, दो शहरों के कचरा इकट्ठा करने वाले लोग प्‍लास्टिक के कचरे से सड़कें बना रहे हैं और महिलाओं को रोज़गार दे रहे हैं।

चक्रवार समाधान

भारत में हर वर्ष क़रीब 6 करोड़ 20 लाख टन और प्रतिदिन एक लाख, 70 हज़ार टन कचरा वजूद में आता है. इसमें से क़रीब 24 प्रतिशत कचरा ही री-सायकल किया जाता है और बाक़ी ढलावों में भर दिया जाता है. भोपाल में नगरपालिका स्तर पर प्रतिदिन 800 मीट्रिक टन ठोस कचरा पैदा होता है. इसमें से क़रीब 120 मीट्रिक टन यानी लगभग 15 प्रतिशत प्‍लास्टिक कचरा है और कुल कचरे में से लगभग 60-70 प्रतिशत कचरा ढलावों में भर दिया जाता है.

इंदौर शहर की आबादी क़रीब बीस लाख है. वहां प्रतिदिन 800-900 मीट्रिक टन कचरा पैदा होता है जिसमें से 14 प्रतिशत प्‍लास्टिक है जो 5-7 जहाज़ी कंटेनर भरने के लिए बराबर है.

शहरी कचरे का प्रबंधन भारत सरकार की एक प्रमुख प्राथमिकता है और इस क्षेत्र में स्‍थानीय स्‍तर पर क़िफ़ायती नए उपायों को बहुत महत्‍व दिया जा रहा है. इस संदर्भ में चक्रवार अर्थव्‍यवस्‍था की अवधारणा अधिक टिकाऊ संसाधन प्रबंधन और प्‍लास्टिक के उत्‍पादन तथा उपयोग में कमी व उसके निपटान का रास्‍ता दिखाती है. यह एक ऐसी आर्थिक अवधारणा है जिसका उद्देश्‍य कचरे को समाप्‍त करना और संसाधनों का अधिक से अधिक उपयोग करना है.

भोपाल और इंदौर में कचरा एकत्र करने वाले लोग कचरे में कमी, उसके दोबारा उपयोग और री-सायकलिंग के एक सशक्‍त उद्देश्‍य के ज़रिए प्‍लास्टिक को पर्यावरण में प्रवेश करने से पहले ही रोकने के लिए काम कर रहे हैं.

प्‍लास्टिक कचरा क्रांति

संयुक्‍त राष्‍ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा संचालित ग्‍लोबल एनवायरनमेंट फ़ैसिलिटी (जीईएफ) के स्‍माल ग्रांट प्रोग्राम (एसजीपी) यानी लघु अनुदान कार्यक्रम के समर्थन से भारत में एक स्‍थानीय एनजीओ नगरपालिका प्रशासनों के साथ मिलकर प्‍लास्टिक कचरे की री-सायकलिंग की नई प्रणाली विकसित कर रहा है.

सार्थक सामुदायिक विकास एवं जन कल्‍याण संस्‍था (एसएसडीएजेकेएस) नामक यह ग़ैर-सरकारी संगठन प्‍लास्टिक कचरे के संग्रह और उसकी री-सायकलिंग से तैयार सामान की बिक्री के लिए भोपाल में कचरा एकत्र करने वालों के साथ 2008 से काम कर रहा है.

इस एनजीओ ने शुरू में भोपाल के 5 वार्डों के लिए एक टिकाऊ समन्वित कचरा प्रबंधन प्रणाली विक‍सित की थी जिसने 2011 में राज्‍य स्‍तर पर प्‍लास्टिक कचरा प्रबंधन नीति बनाने के लिए मॉडल का काम किया था. इसे अब भारत के सभी राज्‍यों (और बांग्‍लादेश तक में भी) में अपनाया जा रहा है. भोपाल मॉडल के नाम से प्रसिद्ध यह अभिनव मॉडल प्‍लास्टिक को री-सायकल और प्रोसेस करके सड़कों के निर्माण में इस्‍तेमाल लायक बनाता है जिससे दो करोड़ से अधिक लोगों को लाभ हो रहा है.

कचरे के ढलावों या अन्‍य स्‍थानों से कचरा और सामग्री बीनने से कचरा बीनने वालों यानी रैगपिकर्स की आजीविका चलती है और इस कचरे को री-सायकल या दोबारा इस्‍तेमाल किया जा सकता है. इनमें अधिकतर ग़रीब, निरक्षर लोग व महिलाएँ होती हैं जो समाज के हाशिए पर धकेली गई जातियों से आते हैं, इसलिए बेहद लाचार होते हैं.

कचरा बीनने वाले लोग कचरा जमा करते हैं और प्‍लास्टिक के कचरे को नगर निगम के संग्रह केन्‍द्रों पर जमा करा देते हैं. प्‍लास्टिक के इस कचरे को छांटकर और तार-तार करके गांठों में बांधा जाता है. इन गांठों को बाद में सीमेंट की भट्टियों में प्रोसेसिंग के लिए ले जाया जाता है या सड़क बनाने के काम में लिया जाता है. इससे वह कहावत सच हो जाती है कि आम के आम और गुठलियों के दाम : न सिर्फ़ कचरा जमा करने वाले समाज के एक सबसे लाचार वर्ग की आमदनी दोगुनी होती है, बल्कि प्‍लास्टिक के कचरे का कुछ सार्थक उपयोग होता है.

2010 में भोपाल नगर निगम और नगर आयुक्‍त के घनिष्‍ठ सहयोग से एसजीपी ने प्रारंभिक अनुदान दिया जिससे सार्थक सामुदायिक विकास एवं जन कल्‍याण संस्‍था को भोपाल नगर निगम के 5 वार्डों में लक्षित प्रयास करने और कचरा बीनने वालों के स्‍व-सहायता समूह बनाने की सामर्थ्‍य मिली.

2014 में इस संस्‍था को एक और एसजीपी अनुदान मिला जिससे भोपाल नगर निगम के 70 वार्डों में 2000 से अधिक असंगठित कचरा बीनने वालों को एकजुट किया जा सका.

प्रामाणिकता प्रदान करना

इस प्रोजैक्‍ट की सफलता में मुख्य भूमिका शहरी नगर प्रशासन और स्‍थानीय उद्योगों के साथ सार्थक सामुदायिक विकास एवं जन कल्‍याण संस्‍था की भागीदारी की थी. इसके कारण कचरा बीनने वालों की कठोर परिस्थितियों को उजागर करने में बहुत मदद मिली और स्‍व-सहायता समूह आजीविका मॉडल को मुख्‍यधारा से जोड़ा जा सका.

कचरा बीनने वालों में से अनेक लोग समाज के हाशिए पर जीते हैं और उनमें निरक्षर महिलाएं होती हैं. उन्‍हें स्‍व-सहायता समूहों के माध्‍यम से कचरा इकट्ठा करने और री-सायकल करने की गतिविधियों में प्रशिक्षित और संगठित किया गया. इनमें से अधिकांश कचरा बीनने वालों को इस प्रोजैक्‍ट के माध्‍यम से नगरपालिका पहचान पत्र और वर्दियां दिलाई गईं.

ये महिलाएँ अपनी आजीविका में सुधार और पर्यावरण संरक्षण करते हुए प्रतिदिन क़रीब दस हज़ार टन प्लास्टिक कचरा भोपाल के 5 रिकवरी केन्‍द्रों तक पहुंचाती हैं जिसे शहर में और आसपास सीमेंट कारख़ीनों में री-सायकल किया जाता है.

''मैं 15 वर्ष से कचरा बीन रही हूं जिनमें पॉलीथीन की थैलियां, कांच, प्‍लास्टिक और न जाने क्‍या-क्‍या होता है. ये सारी चीज़ें हम सड़कों के आस-पास से बीनते हैं. हम सड़कों से प्‍लास्टिक की गंदी थैलियां जमा किया करते थे और प्‍लास्टिक व्‍यापारी प्रति किलो बहुत कम पैसे देते थे क्‍योंकि थैलियां गंदी होती थीं. लोग भी हमें कचरा इकट्ठा करने से रोकते थे और कॉलोनी से चले जाने को कहते थे. अब हम नगरपालिका के साथ मिलकर काम करते हैं, इसलिए हमें कोई नहीं रोकता. अब तो वह हमें बुलाकर कचरा उठाने को कहते हैं''- मीरा गोसाई, कचरा बीनने वाली एक महिला, इंदौर, भारत में प्लास्टिक का कचरा छांटने वाले 3200 व्‍यक्तियों में से एक.

2016 के अंत तक भोपाल में 646 कचरा बीनने वालों को 42 स्‍व-सहायता समूहों में संगठित किया गया. इनमें से 60 प्रतिशत से अधिक महिलाएं हैं, जो प्‍लास्टिक का कचरा बेचकर अपनी दैनिक आजीविका कमाती हैं. कुल मिलाकर महिला स्‍व-सहायता समूहों की 40 सदस्‍यों को इस्‍तेमालशुदा पॉलीथीन से थैले बनाना सिखाया गया है. इन थैलों को भारत भर में प्रदर्शनियों में बेचा जाता है.

भोपाल में मिली इस सफलता से प्रेरित होकर इंदौर में प्रयोग के तौर पर एक प्‍लास्टिक रिकवरी केन्‍द्र स्‍थापित किया गया. अब इंदौर में 3500 कचरा बीनने वालों को स्‍व-सहायता समूहों में संगठित किया गया है.

इस काम से जुड़े ख़तरों को देखते हुए सार्थक सामुदायिक विकास एवं जन कल्‍याण संस्‍था नियमित निरोगी स्‍वास्‍थ्‍य शिविर भी आयोजित करती है और 850 से अधिक कचरा बीनने वालों को स्‍वास्थ्य बीमा योजनाओं में शामिल किया गया है.

कचरा इकट्ठा करने से कचरा रिकवरी तक

स्‍थानीय शासी संस्‍थाओं के सहयोग से भोपाल नगर निगम ने कचरा इकट्ठा करने के केन्‍द्रों के लिए 230 वर्गमीटर ज़मीन आबंटित की. मध्‍य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कचरे को सीमेंट भट्टियों तक पहुंचाने की व्‍यवस्‍था की. भोपाल नगरपालिका ने कचरा आसानी से इकट्ठा करने के लिए सार्थक सामुदायिक विकास एवं जन कल्‍याण संस्‍था के कचरा बीनने वालों को 850 साइकिल रिक्‍शा भी प्रदान किए.

2014 में भोपाल में प्‍लास्टिक कचरा इकट्ठा करने के पांच केन्‍द्रों को प्‍लास्टिक कचरा रिकवरी केन्‍द्र का दर्जा दिया गया. इन केन्‍द्रों में प्‍लास्टिक को चूरा करने की मशीनें, कचरे को दबाकर गांठ बनाने की मशीनें और अन्‍य आवश्‍यक मशीने लगाई गईं. इन केन्‍द्रों को सार्थक सामुदायिक विकास एवं जन कल्‍याण संस्‍था से सहायता मिलती है और इनका प्रबंध महिला स्‍व-सहायता समूह करते हैं.

भोपाल में 5 रिकवरी केन्‍द्रों पर प्रतिदिन क़रीब 10 टन प्‍लास्टिक का कचरा जमा किया जाता है. भोपाल में और आसपास सीमेंट कारख़ानों की भट्टी में जलाने के लिए क़रीब 45 टन प्‍लास्टिक कचरा बेचा जाता है. क़रीब 60 टन प्‍लास्टिक कचरा हर महीने सड़क निर्माण के लिए मध्‍य प्रदेश ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण को बेचा जाता है.

प्‍लास्टिक का कचरा जलाने की कमजोर नियंत्रण व्‍यवस्‍था के कारण मानव स्‍वास्‍थ्‍य और पर्यावरण के लिए बहुत ख़तरे पैदा होते हैं. शोधकर्ताओं का अनुमान है कि अकेले इसी वर्ष दुनिया भर में प्‍लास्टिक के उत्‍पादन और उसे जलाने से 85 करोड़ टन से अधिक ग्रीनहाउस गैसों का उत्‍सर्जन वातावरण में होगा.

2050 तक यह उत्‍सर्जन बढ़कर दो अरब 80 करोड़ टन तक पहुंच सकता है.

आखिरकार मध्‍य प्रदेश सरकार ने प्‍लास्टिक के बारे में एक नीति जारी की जिसमें भोपाल मॉडल का उल्‍लेख है और विशेषकर सार्थक सामुदायिक विकास एवं जन कल्‍याण संस्‍था के कचरा बीनने वालों को संग्रह केन्‍द्रों का अभिन्‍न अंग घोषित किया गया है.

सड़क पर

प्‍लास्टिक के कचरे को दोबरा इस्‍तेमाल करने का पर्यावरण के लिए एक सबसे अनुकूल और क़िफ़ायती उपयोग सड़क निर्माण में है. उच्च स्तर के पॉलीइथाइलीन की गांठें बांधकर सीमेंट कारख़ानों में उन्‍हें ईंधन की तरह जलाने के लिए भेजा जाता है. इस तरह के प्‍लास्टिक को री-सायकल नहीं किया जा सकता और कोयले के साथ मिलाकर 1300 डिग्री सेल्सियस से ऊंचे तापमान तक जलाया जा सकता है.

प्‍लास्टिक रिकवरी केन्‍द्रों के प्रबंधक स्‍व-सहायता समूह - सार्थक सामुदायिक विकास एवं जन कल्‍याण संस्‍था के सहयोग से प्रोसैस किए हुए प्‍लास्टिक के कचरे को री-सायकल करने वालों, सड़क निर्माण एजेंसियों और सीमेंट कारख़ानों को बेचकर छोटे-छोटे उद्यम चलाते हैं. प्‍लास्टिक के कचरे से बनी सड़कें बहुत अधिक टिकाऊ होती हैं क्‍योंकि ये पानी की मार सहने में अधिक सक्षम होती हैं. लंबे समय तक मॉनसून की वर्षा वाले क्षेत्र के लिए यह बहुत बड़ा लाभ है.

Photo credit: Ridham Nagralawala, UNSplash

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Photo credit: Akshay Nanavati, UNSplash

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छोटे अनुदान, बड़े लाभ

1995 में जब भारत में एसजीपी अनुदान की शुरुआत हुई तब से इस योजना ने भारत में जैव-विविधता संरक्षण, जलवायु परिवर्तन का सामना करने और भूमि क्षय रोकने के लिए 350 से अधिक संगठनों और 430 परियोजनाओं को समर्थन दिया जिससे देश भर में 962 से अधिक महिला स्‍व-सहायता समूहों को लाभ हुआ व 15 हज़ार से अधिक लाभार्थियों को मदद मिली.

वैश्विक पर्यावरण का संरक्षण करते हुए लोगों के निरोगी स्वास्थ्य और आजीविका को बढ़ाने वाली परियोजनाओं को वित्‍तीय और तकनीकी सहायता देकर एसजीपी साबित करता है कि अभिप्रेरणा, रचनात्‍मकता, टैक्‍नॉलॉजी और ज्ञान के तालमेल के माध्‍यम से हम अपने समाज और पर्यावरण के सामने मौजूद कुछ सबसे कठिन चुनौतियों के ठोस समाधान खोज सकते हैं.

इस विशेष परियोजना के बारे में अधिक जानकारी के लिए कृपया देखें ---

प्रोजैक्‍ट प्रोफाइल : : Sustainable Management of Plastic Waste and Increased Livelihoods for Sarthak Karmis in partnership with Bhopal Municipal Corporation

भारत में एसजीपी समर्थिक परियोजनाओं के बारे में अधिक जानकारी के लिए देखें : SGP India Country page

समग्र लघु अनुदान कार्यक्रम के विवरण के लिए देखें : https://sgp.undp.org

आलेख एसजीपी भारत, आंद्रिया एगन, एना मारिया कुरिया/फ़ोटो : एसजीपी भारत

इंदौर और भोपाल नगर निगम, मध्‍य प्रदेश, भारत